बिरसा मुंडा आदिवासियों के क्रान्ति के जन्मदाता जननायक
बिरसा पर विशेष लेख
बिरसा मुंडा (15 नवंबर 1875, 09 जून 1900)
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आदिवासियों के क्रान्ति के जन्मदाता जननायक |
आदिवासियों के मसीहा क्रान्तिकारी वीर शहीद बिरसा मुंडा को उनकी जयंती 15 नवंबर और शहादत दिवस 09 जून को श्रद्धेय स्मरण कर उन्हें शत् शत् नमन वंदन करते हुए श्रद्धा सुमन विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते है।
जीवन परिचय
मूल निवासी आदिवासियों के क्रान्ति के जन्मदाता जननायक क्रान्तिकारी वीर शहीद बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को झारखंड की राजधानी रांची से 70 किलोमीटर दूर खूँटी जिले मे पहाड़ों, जंगलो से घिरे उलिहातु गाँव मे जनजातिय मुण्डा दम्पति पिता सुगना और माता करमी मुण्डा के घर मे हुआ था।
झारखंड के अतिरिक्त देश के दूसरे राज्यों में भी आदिवासियों के बीच बिरसा मुंडा क्रांतिवीर के बतौर पर पूजे और जाने जाते है ।
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आदिवासियों के क्रान्ति के जन्मदाता जननायक |
“आदिवासी इलाकों के जंगलों और जमीनों पर, राजा-नवाब या अंग्रेजों का नहीं, बल्कि जनता का कब्जा था।
राजा-नवाब उन आदिवासियों को लूटते थे ,पर उनकी संस्कृति और व्यवस्था में दखल नहीं देते थे । अंग्रेज भी शुरू में वहां जा नहीं पाए थे। रेलों के विस्तार के लिए जब उन्होंने पुराने मानभूम और दामिन-ई-कोह (वर्तमान में संथाल परगना) के इलाकों के जंगल काटने शुरू कर दिए और बड़े पैमाने पर आदिवासी विस्थापित होने लगे ।
“अंग्रेजों ने जमींदारी व्यवस्था लागू कर आदिवासियों के वे गांव, जहां वे सामूहिक खेती किया करते थे; ज़मींदारों,और दलालों में बांटकर राजस्व की नई व्यवस्था लागू कर दी। इसके विरुद्ध बड़े पैमाने पर लोग आंदोलित हुए और उस व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया।
बिरसा मुंडा का संघर्ष पूर्ण जीवन
बिरसा मुंडा को उनके पिता सुगना मुंडा ने पढ़ाई के लिए मिशनरी स्कूल में भर्ती किया था। कहा जाता है कि बिरसा ने कुछ ही दिनों में यह कहकर कि ‘साहेब साहेब एक टोपी है’ स्कूल छोड़ दिया।
बिरसा मुंडा ने महसूस किया कि आदिवासी समाज अंधविश्वासों और आस्था की कुरीतियों के शिकंजे में कैद है। उन्होंने यह भी महसूस किया कि सामाजिक कुरीतियों के कारण ही आदिवासी समाज अज्ञानता का शिकार है। उस समय जमींदारों और जागीरदारों तथा ब्रिटिश शासकों के शोषण की भट्टी में आदिवासी समाज झुलस रहा था। बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें तीन स्तरों पर संगठित करना शुरू किया-
- सामाजिक स्तर,
- आर्थिक स्तर एवं
- राजनैतिक स्तर
आदिवासियों ने ‘बेगारी प्रथा’ के विरुद्ध जबरदस्त आंदोलन किया। परिणामस्वरूप जमींदारों और जागीरदारों के घरों तथा खेतों और वन की भूमि पर कार्य रुक गया। चूंकि उन्होंने सामाजिक और आर्थिक स्तर पर आदिवासियों में चेतना जागरुकता की चिंगारी सुलगा दी थी, अतः राजनीतिक स्तर पर इसे आग बनने में देर नहीं लगी। आदिवासी अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति सजग हुए। बिरसा अब धरती आबा यानी धरती पिता हो गए थे।
03 फरवरी 1900 को बिरसा मुंडा गिरफ्तार किए गए । क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की बहुत-सी धाराओं में मुंडा को पकड़ा गया था, लेकिन बिरसा जानता था कि उसे सजा नहीं होगी। डॉक्टर को बुलाया गया, उसने मुंडा की नाड़ी देखी; जो बंद हो चुकी थी। बिरसा मुंडा नहीं मरा था।
ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें खतरा समझकर गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया। वहां उन्हें धीमा जहर दिया गया, जिसके कारण वे दिनांक 09 जून 1900 को शहीद हो गए ।
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आदिवासियों के क्रान्ति के जन्मदाता जननायक |
क्रान्तिवीर शहीद बिरसा मुंडा आदिवासियों के मसीहा थे और अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग SC/ST/OBC बहुजन समाज के प्रेरणास्रोत थे।
अंधविश्वास और सामाजिक रुढिवादी सामाजिक परम्पराओं और मान्यताओं से समाज को मुक्त कराकर समाज मे ज्ञान की जन जागृति की ज्योत प्रकाशित करने वाले समाज सुधारक बहुजन समाज के मसीहा को उनके निर्वाण दिवस पर शत् शत् नमन कर विनम्र श्रद्धांजलि।
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आदिवासियों के क्रान्ति के जन्मदाता जननायक |
शहीद बिरसा मुंडाजी की जयंती पर महान स्वतंत्रता सेनानी को मेरा कोटि कोटि नमन 🚩...
अंग्रेजों के विरुद्ध उनके संघर्ष ने ब्रिटिश दासता से मुक्ति के लिए समाज को न सिर्फ प्रेरित किया, बल्कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए लोगों को लड़ने का साहस भी दिया।
उम्मीद है लाेग बिरसा मुंडा के आदर्शों पर चलकर पैसाे के लालच एवं गलत विषयों काे त्यागकर धर्मांतरित हाेने से बचेगें तथा देश के खिलाफ कार्य करने वाले लाेगाे के विरुद्ध एकजुट हाेगें।
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